श्री दामोदराष्टकम्
श्री कृष्ण के दामोदर रूप की स्तुति
मूल श्लोक
नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्।
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ॥१॥
अर्थ – मैं उन ईश्वर को नमस्कार करता हूँ जो सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, जिनके कानों में चमकते हुए कुण्डल हैं और जो गोकुल में शोभायमान हैं। जो यशोदा माता के डर से ऊखल से भागते हैं और माता द्वारा बहुत प्रेम से पकड़े जाकर तेजी से दौड़ते हैं।
रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोजयुग्मेन सातंकनेत्रम्।
मुहुःश्वासकम्पत्रिरेखांकणठग्रैवदामोदरं भक्तिबद्धम् ॥२॥
अर्थ – जो बार-बार रो रहे हैं और अपने कमल जैसे हाथों से आँखों को पोंछ रहे हैं, जिनकी आँखों में भय है। जिनकी बार-बार की सांस से कंठ में तीन रेखाएं बन रही हैं और जो भक्तों के प्रेम से रस्सी से बंधे हुए दामोदर हैं।
इतीदृक्स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥३॥
अर्थ – इस प्रकार अपनी लीलाओं से आनन्द के समुद्र में अपने गोकुल वासियों को डुबोने वाले और यह बताने वाले कि वे अपने प्रेमी भक्तों के द्वारा जीते जा सकते हैं, उन्हें मैं प्रेम से सैकड़ों बार नमस्कार करता हूँ।
वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणे अहं वरेशादपीह।
इदन्ते वपुर्नाथ गोपालबालं सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥४॥
अर्थ – हे देव! मैं न तो मोक्ष चाहता हूँ, न मोक्ष की अवधि चाहता हूँ और न ही वरदाताओं के राजा से कोई और वर माँगता हूँ। हे नाथ! आपका यह गोपाल बालक का रूप सदा मेरे मन में विराजमान रहे, और क्या चाहिए?
इदन्ते मुखाम्भोजमव्यक्तनीलैर्वृतं कुन्तलैः स्निग्धरक्तैश्च गोप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः ॥५॥
अर्थ – आपका यह कमल मुख जो घुंघराले नीले बालों से घिरा है और जिसे गोपियों द्वारा बार-बार चूमे जाने से बिम्ब फल के समान लाल अधर हो गए हैं, वह मेरे मन में विराजमान रहे। लाखों लाभ से क्या करना?
नमो देव दामोदरानन्त विष्णो प्रसीद प्रभो दुःखजालाब्धिमग्नम्।
कृपादृष्टिवृष्ट्यातिदीनं बतानुगृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यम् ॥६॥
अर्थ – हे देव! हे दामोदर! हे अनन्त! हे विष्णो! हे प्रभो! कृपा करें। मैं दुःखों के जाल रूपी समुद्र में डूब रहा हूँ। अति दीन हूँ, हे ईश! अपनी कृपा दृष्टि की वर्षा से मुझ अज्ञानी और पतित पर अनुग्रह करें।
कुबेरात्मजौ बद्धमुरत्यैव यद्वत्त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥७॥
अर्थ – जिस प्रकार कुबेर के पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव को आपने वृक्ष से बांधी अवस्था से मुक्त किया और उन्हें भक्ति प्रदान की, उसी प्रकार हे दामोदर! मुझे भी अपनी प्रेम भक्ति प्रदान करें। मुझे मोक्ष की इच्छा नहीं है।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीयप्रियायै नमोऽनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम् ॥८॥
अर्थ – आपकी कमर में बंधी रस्सी को नमस्कार जो चमकती हुई प्रकाश की खान है। आपके उदर को नमस्कार जो सारे विश्व का निवास स्थान है। आपकी प्रिया राधिका को नमस्कार और हे अनन्त लीला वाले देव! आपको नमस्कार।
लीला प्रसंग
यह स्तोत्र श्री कृष्ण की उस मधुर बाल लीला पर आधारित है जब माता यशोदा ने उन्हें मक्खन चुराने के कारण रस्सी से बांधा था। इस लीला में भगवान का दामोदर नाम पड़ा - जिनकी कमर (उदर) में दाम (रस्सी) बंधी हो।
महत्व
- कार्तिक मास में विशेष रूप से इसका पाठ किया जाता है
- बाल कृष्ण की मधुर लीलाओं का स्मरण
- मातृ भाव से भगवान की उपासना का आदर्श
- प्रेम भक्ति की सर्वोच्चता का संदेश
यह स्तोत्र भक्तों को सिखाता है कि भगवान शक्ति से नहीं बल्कि प्रेम से जीते जाते हैं।